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श्रुति हासन ने तुलना करने को दुनिया की बहुत बड़ी बीमारी बताया, नेपोटिज्म पर बोलीं- साउथ इंडस्ट्री में ये सब बिल्कुल नहीं चलता है

तिग्मांशु धूलिया निर्देशित श्रुति हासन की फिल्म 'यारा' का प्रीमियर जल्द ही ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर होने वाला है। इसके प्रमोशन के दौरान बातचीत करते हुए उन्होंने माता-पिता से तुलना से लेकर भाई-भतीजावाद तक कई मुद्दों को लेकर दैनिक भास्कर से बात की।

सवाल- 'यारा' चार दोस्तों की कहानी है। फिर इसमें आपको कितना स्पेस मिला है?


श्रुति- 'बहुत ज्यादा मिला है। सामने से दिखता है कि चार लड़कों के बीच की बॉन्डिंग है। मैंने सुकन्या का कैरेक्टर प्ले किया है, जिसकी वजह से काफी चीजें बदलती हैं। तिग्मांशु धूलिया की फिल्मों के हमेशा फीमेल कैरेक्टर बहुत अलग रहते हैं। उसमें करने के लिए बहुत कुछ रहता है। इसमें मेरा भी बहुत ही अच्छा और इंपॉर्टेंट रोल है। अपने रोल से संतुष्ट हूं।'

सवाल- शूटिंग के दौरान आप एक इकलौती एक्ट्रेस थीं, फिर सेट पर कैसे वक्त कटता था?


श्रुति- 'मुझे कभी कभार ही फीमेल डायरेक्टर मिलते हैं। इसलिए सेट पर ज्यादातर मैं और मेरी हेयर ड्रेसर ही रहते हैं। 'रमैया-वस्तावैया' में कई फीमेल कैरेक्टर थीं, क्योंकि फैमिली ड्रामा था। देखेंगे तो सेट पर बमुश्किल 10 औरतें होती हैं और आदमी 100 होते हैं। यह तो हमेशा से ऐसा होता आया है, इसलिए मुझे ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।'

सवाल- एक्टिंग से इतर सिंगिंग-राइटिंग आदि विधा में क्या कर रही है?


श्रुति- 'मैंने करियर की शुरुआत बतौर म्यूजिशियन की थी। लेकिन सही तरीक से मुझे फिल्म पर फोकस करना था। मैंने 8-9 साल तक लाइव शो नहीं किया था। इसलिए एक्टिंग से एक-डेढ़ साल का ब्रेक लेकर लंदन गई और वहां पर यह टीम सेट करके म्यूजिक पर काम करते हुए लाइव शो करना शुरू किया। इससे मुझे कला की संतुष्टि मिली। इस ब्रेक में लगा कि मुझे अलग किस्म की फिल्म करनी थी।'

सवाल- आगे किस पर ज्यादा ध्यान देंगी?


श्रुति- 'मैं बैलेंस बनाकर चलूंगी। अभी मैं 2 तमिल और 2 तेलुगू फिल्म कर रही हूं। दरअसल काफी समय से मैंने म्यूजिक पर ध्यान नहीं दिया था, इसलिए उस पर भी काम कर रही हूं। हिंदी फिल्मों की बात करूं तो मुझे और बेहतरीन कैरेक्टर मिलने चाहिए। कुछ 'यारा' की तरह होना चाहिए।'

सवाल- ब्रेक के दौरान क्या खास पाया?


श्रुति- 'मैं देख रही हूं कि अभी यंग लोग बड़े ठहराव के साथ अपने करियर को अप्रोच कर रहे हैं। अब मेरा पॉइंट ऑफ व्यू यह है कि जितना हम किसी काम के लिए हां कहते हैं, उतना न कहना भी इंपॉर्टेंट है। अच्छे मौके को सही तरीके से इस्तेमाल करना भी हमारा कर्तव्य है। अभी मेरा यही माइंड सेट है।'

सवाल- एक्टिंग लाइन में देखा गया है कि यहां हर रिश्ते के साथ तुलना की जाती है। आप फिल्मी परिवार से आती हैं, क्या कभी यह तुलना चुनौतीपूर्ण रही?


श्रुति- मैं कहना चाहूंगी कि तुलना करना दुनिया की एक बहुत बड़ी बीमारी है। फिर चाहे तुलना किसी भी तरीके से की जाए। मम्मी-पापा के साथ मेरी तुलना की जाएगी, यह तो मुझे शुरू से पता था। मेरी पहली पिक्चर 'लक' के समय मुझे लग रहा था कि मैं बहुत कॉन्फिडेंट हूं, पर अंदर से मेरी हालत बहुत खराब थी।'

'मेरे माता-पिता कम उम्र से एक्टिंग कर रहे हैं। उन्होंने भी गलतियां की होंगी, लेकिन किसी ने कंपेयर करके नहीं दिखाया। उनकी जो लर्निंग थी, वह उनके अंदर से आई। खैर जब कमल हासन से मेरा कंपेयर किया गया तो मेरी हालत बहुत खराब हो गई।'

'फिर मैंने डिसीजन लिया कि तुलना जनरली लाइफ में अच्छी बात नहीं है। इसलिए यह शब्द मुझे अपनी डिक्शनरी से निकालना था। मैंने अपने आपसे प्रॉमिस किया कि मैं कभी भी अपने आप को किसी से कंपेयर नहीं करूंगी। अपना काम मेहनत से करके सिर झुका कर निकल जाऊंगी। बस मेरा यही फंडा रहा।'

सवाल- आप फिल्मी बैकग्राउंड से आती हैं। ऐसे में जब भाई-भतीजावाद की बात सुनती हैं, तब कैसा फील करती हैं और आपका रिएक्शन क्या होता है?

श्रुति- 'मैं कभी यह नहीं कहती हूं कि यह मेरे लिए मुश्किल रहा या आसान रहा। यहां नाम की वजह से दरवाजे तो खुलते हैं, लेकिन अंदर जाकर रहना, चहल-पहल करना, बात करना यह हमारे ऊपर निर्भर होता है।'

'मुझे बाहर और अंदर का भी हमेशा एक कन्फ्यूजन रहता है, क्योंकि भले ही मेरा सरनेम हासन हो, मुझे हमेशा ऐसा लगता है कि मुझे अपने आपको समझने में काफी टाइम लगा। काफी लोग मुझे समझते नहीं है, मुझे अभी भी ऐसा लगता है। ऐसे में कभी-कभी बाहरीपन भी महसूस होता है। लेकिन यहां हर किसी को बहुत मेहनत करके नाम बनाना पड़ता है।'

'साउथ में यह उनके भाई हैं या उनके बेटे हैं, यह तो बिल्कुल नहीं चलता है। तमिल सिनेमा में मैं शायद दूसरी या तीसरी लड़की हूं, जो किसी एक्टर की बेटी हूं। फिलहाल मेरे बाद और कई लोग आए। वहां बहुत कम लोग हैं, जो किसी के रिलेटिव हैं। यह जो नेपोटिज्म बोलते हैं, वह तमिल इंडस्ट्री में बहुत कम है।



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Shruti Haasan called the comparison a very big disease in the world, spoke on nepotism - all this does not work in South Industry.


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